आईवीएफ (IVF) क्या है
By. SHER SINGH MEENA
परिचय
आज के आधुनिक युग में विज्ञान ने चिकित्सा क्षेत्र में अद्भुत प्रगति की है। विशेषकर उन दंपतियों के लिए जो संतान सुख से वंचित हैं, आईवीएफ (IVF - इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) एक वरदान साबित हुआ है। जब प्राकृतिक रूप से गर्भधारण संभव नहीं होता, तब इस तकनीक की मदद ली जाती है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आईवीएफ क्या है, इसकी प्रक्रिया, लाभ, जोखिम, लागत और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
आईवीएफ (IVF) क्या है?
आईवीएफ का पूरा नाम है "इन विट्रो फर्टिलाइजेशन"। यह एक प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology - ART) है, जिसमें महिला के अंडाणु (Egg) और पुरुष के शुक्राणु (Sperm) को लैब में मिलाया जाता है। जब भ्रूण (Embryo) बन जाता है, तो उसे महिला के गर्भाशय (Uterus) में स्थापित कर दिया जाता है। जो प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं। इस प्रक्रिया में महिला के अंडाशय से अंडे (ovum) निकाले जाते हैं और पुरुष के शुक्राणु (sperm) को प्रयोगशाला (लैब) में, शरीर के बाहर, एक विशेष माध्यम (culture medium) में निषेचित किया जाता है। निषेचन के बाद, जो भ्रूण (embryo) बनता है, उसे विकसित होने के लिए महिला के गर्भाशय (uterus) में वापस प्रत्यारोपित (transfer) किया जाता है। यदि भ्रूण गर्भाशय की परत से सफलतापूर्वक जुड़ जाता है और बढ़ता है, तो गर्भावस्था होती है।
आईवीएफ की प्रक्रिया के मुख्य चरण:
आईवीएफ की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है, जिनमें शामिल हैं:
कब आवश्यक होता है IVF?
आईवीएफ तकनीक तब उपयोग में लाई जाती है जब निम्नलिखित समस्याएं सामने आती हैं:
- महिला की फॉलोपियन ट्यूब में रुकावट या क्षति
- पुरुष में शुक्राणु की कमी या गुणवत्ता में कमी
- एंडोमेट्रिओसिस
- अज्ञात कारणों से बांझपन (Unexplained Infertility)
- उम्र बढ़ने के कारण अंडाणुओं की गुणवत्ता में गिरावट
- पहले की फर्टिलिटी ट्रीटमेंट असफल होना
आईवीएफ किसे कराना चाहिए? (Who should consider IVF?)
महिलाओं में बांझपन के कारण:
- दोनों फैलोपियन ट्यूबों का अवरुद्ध या क्षतिग्रस्त होना (Bilateral Tubal Blockage): जब फैलोपियन ट्यूबें अवरुद्ध होती हैं, तो अंडा शुक्राणु से मिल नहीं पाता है और न ही निषेचित अंडा गर्भाशय तक पहुंच पाता है। ऐसे में आईवीएफ एकमात्र विकल्प हो सकता है।
- ओव्यूलेशन संबंधी विकार (Ovulation Disorders): यदि महिला को नियमित रूप से ओव्यूलेशन नहीं होता है या अंडे की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है।
- एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis): इसमें गर्भाशय की परत जैसा ऊतक गर्भाशय के बाहर बढ़ता है, जिससे दर्द और बांझपन हो सकता है। गंभीर एंडोमेट्रियोसिस में आईवीएफ एक प्रभावी विकल्प हो सकता है।
- कम डिम्बग्रंथि रिजर्व (Low Ovarian Reserve): बढ़ती उम्र के कारण या समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता (Premature Ovarian Failure) के कारण अंडों की संख्या और गुणवत्ता कम हो जाती है।
- समय से पहले रजोनिवृत्ति (Premature Menopause): यदि महिला की माहवारी उम्र से पहले बंद हो गई हो।
- गर्भाशय संबंधी समस्याएं (Uterine Problems): जैसे गर्भाशय में फाइब्रॉइड या अन्य असामान्यताएं जो गर्भधारण में बाधा डालती हैं।
- अस्पष्टीकृत बांझपन (Unexplained Infertility): जब सभी जांचों के बावजूद बांझपन का कोई स्पष्ट कारण नहीं मिलता है और कई वर्षों से प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पा रहा है। इस स्थिति में कई IUI चक्रों की विफलता के बाद भी आईवीएफ की सिफारिश की जा सकती है।
- उन्नत मातृ आयु (Advanced Maternal Age): 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में आईवीएफ सहायक हो सकता है।
पुरुषों में बांझपन के कारण
- शुक्राणु संबंधी समस्याएं (Sperm-related Problems): जैसे शुक्राणुओं की संख्या कम होना (Low Sperm Count), शुक्राणुओं की गतिशीलता कमजोर होना (Poor Sperm Motility), या शुक्राणुओं की असामान्य आकृति (Abnormal Sperm Morphology) जो अंडे को निषेचित करने की क्षमता को प्रभावित करती है।
- वीर्य स्खलन से जुड़ी समस्याएं (Ejaculatory Dysfunction): ऐसी समस्याएं जिनमें शुक्राणु सामान्य रूप से स्खलित नहीं हो पाते हैं।
कारण:अन्य
- आनुवंशिक विकार (Genetic Disorders): यदि दंपति में कोई आनुवंशिक विकार हो और वे स्वस्थ भ्रूण का चयन करके बच्चे को जन्म देना चाहते हैं (जिसे प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस - PGD या PGT-A/M के साथ IVF कहते हैं)।
- गर्भाशय न होने की स्थिति (Absence of Uterus): जिन महिलाओं का गर्भाशय शल्य चिकित्सा द्वारा हटा दिया गया है, वे सरोगेसी के साथ आईवीएफ पर विचार कर सकती हैं।
- पिछले उपचारों की विफलता: यदि अन्य प्रजनन उपचार, जैसे IUI के कई चक्र विफल हो गए हों।
- प्रजनन क्षमता का संरक्षण (Fertility Preservation): कैंसर या अन्य चिकित्सा स्थितियों के उपचार से पहले प्रजनन क्षमता को बनाए रखने के लिए अंडे या शुक्राणु को फ्रीज (Frozen) करने के लिए।
आईवीएफ प्रक्रिया की चरणबद्ध जानकारी
आईवीएफ की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है:
- ओवेरियन स्टिमुलेशन (अंडाशय को उत्तेजित करना) :इस चरण में महिला को हार्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि वह एक से अधिक अंडाणु उत्पन्न कर सके। यह 8-14 दिन तक चलता है।
- अंडाणुओं का संग्रहण (Egg Retrieval: जब अंडाणु तैयार हो जाते हैं, तब डॉक्टर अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई द्वारा उन्हें बाहर निकालते हैं।
- शुक्राणुओं का संग्रहण : पुरुष से वीर्य (Semen) का सैंपल लिया जाता है और उसमें से स्वस्थ शुक्राणुओं को चुना जाता है।
- निषेचन (Fertilization) अंडाणु और शुक्राणु को लैब में मिलाया जाता है। कभी-कभी ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection) तकनीक का उपयोग किया जाता है।
- भ्रूण विकास निषेचित अंडाणु को लैब में 3-5 दिनों तक विकसित किया जाता है। सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले भ्रूण को चुना जाता है
- भ्रूण स्थानांतरण (Embryo Transfer)
- एक या दो भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है
- गर्भधारण की पुष्टि : स्थानांतरण के लगभग 12-14 दिनों बाद रक्त परीक्षण द्वारा यह पता चलता है कि महिला गर्भवती हुई है या नहीं।
आईवीएफ के लाभ
- बांझपन की समस्या का समाधान
- एंडोमेट्रिओसिस जैसी जटिलताओं में भी प्रभावी
- उम्रदराज महिलाओं को मातृत्व का अवसर
- LGBTQ+ समुदाय या सिंगल पैरेंट्स के लिए संतान प्राप्ति का रास्ता
आईवीएफ की चुनौतियाँ और जोखिम
IVF (In Vitro Fertilization) की चुनौतियाँ और जोखिम (Challenges and Risks) को समझना बहुत जरूरी है, ताकि जोड़े सही जानकारी और सोच के साथ निर्णय ले सकें।
🔹 IVF की प्रमुख चुनौतियाँ:
1. भावनात्मक दबाव: IVF प्रक्रिया लंबी और मानसिक रूप से थकाऊ हो सकती है।
बार-बार असफलता से तनाव, चिंता और अवसाद की संभावना रहती है।
2. आर्थिक बोझ: एक IVF चक्र की लागत ₹1.5 लाख से ₹2.5 लाख या अधिक हो सकती है।
कई बार एक से अधिक चक्रों की जरूरत पड़ती है, जिससे खर्च बढ़ जाता है।
3. समय और धैर्य की जरूरत: पूरे इलाज में हफ्तों या महीनों का समय लग सकता है।
नौकरी या निजी जीवन पर प्रभाव पड़ सकता है।
4. सामाजिक दबाव: कुछ जगहों पर अब भी IVF को लेकर समाज में भ्रांतियाँ और दबाव होते हैं।
🔹 IVF से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम:
1. Ovarian Hyperstimulation Syndrome (OHSS):
अंडाशय को उत्तेजित करने वाली दवाओं के कारण अंडाशय फूल सकते हैं और दर्द, सूजन, मतली जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
2. Multiple Pregnancy (जुड़वां या अधिक गर्भ):
IVF में एक से अधिक भ्रूण प्रत्यारोपित करने से जुड़वां या ट्रिप्लेट गर्भ की संभावना रहती है, जिससे समय से पहले प्रसव और अन्य जटिलताएं हो सकती हैं।
3. Ectopic Pregnancy (गर्भाशय के बाहर गर्भ):
IVF में दुर्लभ लेकिन संभव स्थिति होती है जिसमें भ्रूण गर्भाशय के बजाय फैलोपियन ट्यूब में विकसित होने लगता है।
4. गर्भपात का जोखिम:
IVF से हुए गर्भ में भी गर्भपात की संभावना होती है, विशेषकर उम्र अधिक होने पर।
5. बच्चे में हल्के जोखिम:
कुछ शोधों में IVF बच्चों में कम जन्म वजन या समय से पहले जन्म की संभावना बताई गई है, लेकिन अधिकांश बच्चे सामान्य और स्वस्थ होते हैं।
6.महंगा इलाज:
एक चक्र की लागत ₹1.5 लाख से ₹2.5 लाख तक हो सकती है।
हार्मोनल दवाओं के साइड इफेक्ट्स
एक से अधिक भ्रूण स्थानांतरण से जुड़ी बहुजाता गर्भावस्था (Twins/Triplets)
7.भावनात्मक तनाव:
कभी-कभी पहला या एक से अधिक चक्र असफल हो सकते हैं
सफलता दर क्या है?
IVF (In Vitro Fertilization) की सफलता दर (Success Rate) कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे महिला की उम्र, स्वास्थ्य, क्लिनिक की गुणवत्ता, और उपचार की संख्या। नीचे भारत में IVF की औसत सफलता दर का विवरण दिया गया है:
✅ आयु के आधार पर सफलता दर:
महिला की उम्र IVF सफलता दर (प्रति साइकिल)
- 35 वर्ष से कम 45% – 55%
- 35–37 वर्ष 40% – 50%
- 38–40 वर्ष 30% – 40%
- 40–42 वर्ष 20% – 30%
- 42 वर्ष से अधिक 10% – 15% (या कम)
✅ अन्य कारकों का प्रभाव:
- Donor Eggs (यदि उपयोग किए जाएं): सफलता दर बढ़ जाती है (50%–70%)
- Repeated Cycles: कई बार IVF एक बार में सफल नहीं होता। तीसरे या चौथे चक्र में सफलता की संभावना बढ़ सकती है।
- Lifestyle और BMI: संतुलित आहार, धूम्रपान से दूरी और स्वस्थ जीवनशैली IVF की सफलता को बढ़ा सकते हैं।
✅ भारत में औसत सफलता दर:
लगभग 40% – 50% प्रति साइकिल, विशेष रूप से युवा महिलाओं में।
IVF की सफलता निश्चित नहीं होती, लेकिन आधुनिक तकनीक, सही सलाह और अनुभवी डॉक्टरों की मदद से इसकी संभावना अच्छी हो सकती है — खासकर यदि उम्र 35 से कम हो। औसतन, 30-35 वर्षीय महिला में आईवीएफ की सफलता दर 40-50% तक होती है।
भारत में IVF की स्थिति
भारत में IVF (In Vitro Fertilization) की स्थिति पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से विकसित हुई है। बढ़ती बांझपन की समस्याओं, जागरूकता और मेडिकल तकनीकों में प्रगति के चलते अब IVF एक आम और स्वीकार्य प्रजनन उपचार बन चुका है। यहाँ इसकी स्थिति को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है:
उपलब्धता: भारत में अब मेट्रो शहरों से लेकर छोटे शहरों तक IVF क्लिनिक खुल चुके हैं। अपोलो, मणिपाल, मिलन, और कई अन्य अस्पतालों में IVF सेवाएं उपलब्ध हैं।लागत: IVF की लागत भारत में पश्चिमी देशों की तुलना में काफी कम है (लगभग ₹1.5 लाख से ₹2.5 लाख प्रति साइकिल), जिससे यह एक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल टूरिज़्म का भी केंद्र बन रहा है।
कानूनी स्थिति: भारत सरकार ने Assisted Reproductive Technology (ART) Act, 2021 लागू किया है, जो IVF क्लिनिक्स को विनियमित करता है और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाता है।
चुनौतियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी IVF की पहुंच कम है। इसके अलावा, समाज में अब भी कुछ स्तर पर भ्रांतियाँ और सामाजिक कलंक मौजूद हैं।
सफलता दर: भारत में IVF की सफलता दर औसतन 40-50% तक है, जो महिला की उम्र, स्वास्थ्य और अन्य कारकों पर निर्भर करती है।
कुल मिलाकर, भारत में IVF अब एक व्यापक रूप से उपलब्ध, कानूनी और चिकित्सा रूप से उन्नत प्रक्रिया बन चुकी है।
भारत में आईवीएफ तकनीक काफी सुलभ होती जा रही है। महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक IVF क्लिनिक खुल चुके हैं। भारत में यह चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती भी है। कई सरकारी योजनाएं और बीमा कंपनियाँ अब इसे कवर करने लगी हैं।
क्या IVF से होने वाला बच्चा सामान्य होता है?
यह एक आम सवाल है। वैज्ञानिक अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि IVF से जन्मे बच्चे सामान्य बच्चों की तरह ही होते हैं – शारीरिक और मानसिक रूप से। हालांकि कुछ मामलों में हल्की जटिलताएं हो सकती हैं, लेकिन ये प्राकृतिक गर्भधारण में भी संभव होती हैं।
हाँ, IVF से जन्म लेने वाला बच्चा बिल्कुल सामान्य होता है, जैसे कि प्राकृतिक रूप से जन्मा हुआ बच्चा।
यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं:
✅ शारीरिक और मानसिक विकास:
IVF से जन्मे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह ही होता है।
वे स्कूल, खेल, सामाजिक गतिविधियों में समान रूप से भाग लेते हैं।
✅ स्वास्थ्य संबंधी जोखिम:
कुछ अध्ययन बताते हैं कि IVF से जन्मे बच्चों में थोड़ा बढ़ा हुआ प्रीमैच्योर डिलीवरी या कम जन्म वजन का जोखिम हो सकता है, लेकिन ये जोखिम भी आधुनिक तकनीकों से बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं।
अधिकांश IVF बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं।
✅ जीन या DNA:
बच्चा माता-पिता के ही अंडाणु और शुक्राणु से बनता है (अगर डोनर का उपयोग न किया जाए), इसलिए उसका जीन सामान्य बच्चे की तरह होता है।
✅ सामाजिक दृष्टिकोण:
अब समाज में भी IVF को ज्यादा स्वीकार्यता मिल रही है, और IVF से जन्मे बच्चों को सामान्य ही माना जाता है।
IVF से जन्मा बच्चा शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक रूप से पूरी तरह से सामान्य होता है। यह केवल गर्भधारण का तरीका अलग होता है, बच्चा बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे प्राकृतिक गर्भधारण से जन्मा हो।
वैकल्पिक विकल्प (Alternative Options)
अगर IVF सफल नहीं होता या किसी कारण से संभव नहीं होता, तो कुछ अन्य विकल्प भी हैं:
IUI (Intrauterine Insemination) आईयूआई (इन्ट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन) एक सरल और प्रभावी प्रजनन उपचार है, जिसका उपयोग उन दंपतियों के लिए किया जाता है जिन्हें गर्भधारण में कठिनाई हो रही होती है। इस प्रक्रिया में पुरुष के शुक्राणुओं को विशेष तरीके से साफ़ कर के महिला के गर्भाशय में सीधे डाला जाता है, जिससे शुक्राणु अंडाणु तक आसानी से पहुँच सके। यह प्रक्रिया ओव्यूलेशन के समय की जाती है ताकि गर्भधारण की संभावना बढ़ सके। आईयूआई आमतौर पर दर्द रहित होती है और इसमें हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। यह आईवीएफ की तुलना में कम खर्चीली और कम जटिल होती है।
सरोगेसी (Surrogacy) सुरोगेसी (Surrogacy) एक ऐसी प्रजनन प्रक्रिया है जिसमें एक महिला (सुरोगेट मां) किसी अन्य दंपति के लिए गर्भधारण करती है और बच्चे को जन्म देती है। यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब कोई महिला स्वंय गर्भधारण करने में असमर्थ होती है या स्वास्थ्य कारणों से गर्भधारण करना जोखिम भरा होता है। सुरोगेसी दो प्रकार की होती है: जैविक (traditional) और गर्भधारणीय (gestational)। भारत में अब केवल परोपकारी (altruistic) सुरोगेसी की अनुमति है, जिसमें पैसे का लेन-देन नहीं होता। यह प्रक्रिया भावनात्मक और कानूनी रूप से जटिल होती है, इसलिए इसके लिए सही मार्गदर्शन आवश्यक होता है।
एग डोनेशन (Egg Donation): इसमें एक स्वस्थ महिला अपने अंडाणु (एग्स) दान करती है, जिन्हें एक पुरुष के शुक्राणु के साथ लैब में मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है। यह भ्रूण बाद में गर्भधारण करने वाली महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब महिला अपने अंडाणु से गर्भधारण नहीं कर सकती।
स्पर्म डोनेशन (Sperm Donation): इसमें एक पुरुष अपने शुक्राणु दान करता है, जिसे महिला के अंडाणु के साथ मिलाया जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर IUI या IVF के माध्यम से की जाती है। इसका उपयोग तब होता है जब पुरुष के शुक्राणु अनुपलब्ध हों या अस्वस्थ हों। प्रक्रियाएं गोपनीयता, चिकित्सा जांच और कानूनी सहमति के साथ की जाती हैं।
एडल्शन (Adoption) गोद लेना (Adoption) एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति या दंपति किसी अनाथ या परित्यक्त बच्चे को अपना कर उसे अपने परिवार का हिस्सा बनाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद गोद लिया गया बच्चा उस परिवार का समान कानूनी उत्तराधिकारी बन जाता है, जैसे कि जैविक संतान होती है।
भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को CARA (Central Adoption Resource Authority) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। गोद लेने के लिए दंपति या एकल व्यक्ति को कुछ कानूनी और सामाजिक मानदंडों को पूरा करना होता है। यह एक मानवीय और संवेदनशील प्रक्रिया है जो एक बच्चे को नया जीवन और परिवार देती है।
आईवीएफ एक क्रांतिकारी तकनीक है जिसने लाखों दंपतियों को माता-पिता बनने का अवसर दिया है। हालांकि यह प्रक्रिया भावनात्मक और आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन सही मार्गदर्शन और विशेषज्ञ सलाह के साथ इसे सफल बनाया जा सकता है।






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