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FSH & LH HORMONE FUNCTION IN HUMAN BODY

FSH & LH HORMONE FUNCTION IN HUMAN BODY

By:- Shersingh Meena


 

हमारा शरीर इतनी जटिल प्रक्रियाओं को कैसे नियंत्रित करता है? खासकर प्रजनन जैसी मूलभूत क्रिया, जो जीवन को आगे बढ़ाती है। इस पूरी प्रक्रिया के पीछे कुछ अदृश्य नायक काम करते हैं - हमारे हार्मोन। और जब बात प्रजनन की आती है, तो दो हार्मोन का नाम सबसे पहले आता है

FSH (फॉलिकल-स्टिम्युलेटिंग हार्मोन) और LH (ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन)


ये दोनों हार्मोन हमारे शरीर के एक छोटे से हिस्से, मस्तिष्क के नीचे स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि से स्रावित होते हैं, लेकिन इनका प्रभाव हमारे प्रजनन तंत्र पर बहुत बड़ा होता है। इन्हें अक्सर गोनाडोट्रोपिन कहा जाता है क्योंकि ये सीधे हमारे गोनाड्स (पुरुषों में वृषण और महिलाओं में अंडाशय) पर कार्य करते हैं। आइए, इन दोनों महत्वपूर्ण हार्मोनों की गहराई से पड़ताल करते हैं और समझते हैं कि ये हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

FSH: प्रजनन क्षमता का पहला कदम


FSH - जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, "फॉलिकल को उत्तेजित करने वाला हार्मोन" है। इसका काम फॉलिकल्स को सक्रिय करना है – ये छोटी-छोटी थैलियाँ होती हैं जिनमें हमारे अंडे या शुक्राणु कोशिकाएं बनती हैं।

महिलाओं में FSH की अनूठी भूमिका


मासिक धर्म चक्र की शुरुआत में, FSH का स्तर धीरे-धीरे बढ़ना शुरू होता है। यह बढ़ा हुआ FSH अंडाशय में कई फॉलिकल्स को जगाता है और उन्हें विकसित होने के लिए प्रेरित करता है। हर फॉलिकल के अंदर एक अपरिपक्व अंडा होता है। FSH इन अंडों को परिपक्व होने में मदद करता है। इस प्रक्रिया के बिना, अंडे कभी भी ओव्यूलेशन (अंडाशय से अंडे का निकलना) के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे, और गर्भधारण असंभव होगा।
जैसे-जैसे फॉलिकल्स बड़े होते हैं, वे एस्ट्रोजन नामक हार्मोन का उत्पादन करते हैं, जो गर्भाशय की परत को मोटा करता है, ताकि यदि गर्भधारण हो तो भ्रूण के लिए एक आरामदायक और पोषक वातावरण बन सके। FSH और एस्ट्रोजन के बीच का यह तालमेल एक सफल गर्भावस्था की नींव रखता है।
महिलाओं की उम्र बढ़ने के साथ, खासकर जब वे रजोनिवृत्ति (Menopause) के करीब आती हैं, तो अंडाशय की फॉलिकल्स को विकसित करने की क्षमता कम होने लगती है। इसका मतलब है कि अंडाशय को प्रतिक्रिया देने के लिए पिट्यूटरी ग्रंथि से अधिक FSH की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि रजोनिवृत्ति के दौरान और उसके बाद महिलाओं में FSH का स्तर बहुत ऊंचा रहता है – यह शरीर का एक प्रयास है कि वह निष्क्रिय होते अंडाशयों को उत्तेजित कर सके।

पुरुषों में FSH: शुक्राणु उत्पादन का आधार


पुरुषों में भी FSH की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है, हालांकि थोड़ी अलग। यह वृषण (Testes) में शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। शुक्राणुजनन वह प्रक्रिया है जिसमें लगातार नए शुक्राणु कोशिकाओं का उत्पादन होता है। FSH विशेष रूप से सर्टोली कोशिकाओं (Sertoli cells) पर कार्य करता है। ये कोशिकाएं वृषण में 'नर्स' कोशिकाओं के रूप में कार्य करती हैं, जो विकसित हो रहे शुक्राणुओं को पोषण और सहायता प्रदान करती हैं।
FSH, टेस्टोस्टेरोन नामक पुरुष हार्मोन के साथ मिलकर, स्वस्थ और सक्रिय शुक्राणुओं के निरंतर उत्पादन को सुनिश्चित करता है। यदि पुरुषों में FSH का स्तर पर्याप्त नहीं होता, तो शुक्राणु उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है।

LH: ओव्यूलेशन का जादू और टेस्टोस्टेरोन की ताकत


LH, या ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन, FSH का करीबी सहयोगी है और प्रजनन में इसकी अपनी विशिष्ट और महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं।
महिलाओं में LH: मासिक धर्म चक्र का निर्णायक मोड़
महिलाओं में, LH की सबसे प्रभावशाली भूमिका मासिक धर्म चक्र के मध्य में दिखाई देती है। जब एक प्रमुख फॉलिकल पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है और एस्ट्रोजन का स्तर एक निश्चित सीमा तक पहुंच जाता है, तो पिट्यूटरी ग्रंथि से अचानक LH का एक बड़ा स्राव होता है – इसे LH सर्ज (LH Surge) कहा जाता है।
यह LH सर्ज ही वह निर्णायक संकेत है जो ओव्यूलेशन को ट्रिगर करता है। ओव्यूलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें परिपक्व अंडा फॉलिकल से बाहर निकलकर फैलोपियन ट्यूब में प्रवेश करता है, जहां यह शुक्राणु द्वारा निषेचित होने का इंतजार करता है। LH सर्ज के बिना ओव्यूलेशन नहीं हो सकता, और परिणामस्वरूप गर्भधारण भी नहीं।
ओव्यूलेशन के बाद, LH का एक और महत्वपूर्ण कार्य होता है: यह बचे हुए फॉलिकल को कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus Luteum) नामक एक अस्थायी ग्रंथि में बदलने में मदद करता है। कॉर्पस ल्यूटियम तब प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का उत्पादन करता है। प्रोजेस्टेरोन गर्भाशय की परत को निषेचित अंडे के आरोपण (Implantation) के लिए तैयार करता है और गर्भावस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि गर्भधारण नहीं होता, तो कॉर्पस ल्यूटियम सिकुड़ जाता है, प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिर जाता है, और मासिक धर्म शुरू हो जाता है।

पुरुषों में LH: पुरुषत्व का आधार


पुरुषों में, LH मुख्य रूप से टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है। LH वृषण में पाई जाने वाली लेडिग कोशिकाओं (Leydig Cells) को उत्तेजित करता है। ये कोशिकाएं टेस्टोस्टेरोन बनाती हैं, जो पुरुषों में प्रमुख पुरुष सेक्स हार्मोन है। टेस्टोस्टेरोन ही पुरुषों में द्वितीयक यौन विशेषताओं, जैसे गहरी आवाज, मांसपेशियों का विकास, और शरीर के बालों के लिए जिम्मेदार होता है। यह स्वस्थ शुक्राणु उत्पादन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
LH और टेस्टोस्टेरोन के बीच एक नकारात्मक प्रतिक्रिया तंत्र (Negative Feedback Loop) होता है। जब टेस्टोस्टेरोन का स्तर उच्च होता है, तो यह पिट्यूटरी ग्रंथि को कम LH जारी करने का संकेत देता है, जिससे टेस्टोस्टेरोन उत्पादन संतुलित रहता है।
हार्मोनों का यह जटिल नृत्य: विनियमन और नियंत्रण
FSH और LH का उत्पादन और स्राव एक बेहद परिष्कृत प्रणाली द्वारा नियंत्रित होता है जिसे हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-गोनाडल (HPG) अक्ष कहा जाता है।

हाइपोथैलेमस:


 यह मस्तिष्क का एक हिस्सा है जो गोनाडोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन (GnRH) स्रावित करता है।

 पिट्यूटरी ग्रंथि: 


GnRH के जवाब में, पिट्यूटरी ग्रंथि FSH और LH का उत्पादन और स्राव करती है।

 गोनाड्स (अंडाशय/वृषण):


 FSH और LH के प्रभाव में सेक्स हार्मोन (एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, टेस्टोस्टेरोन) का उत्पादन करते हैं।
यह पूरा अक्ष एक साथ काम करता है, जिसमें हार्मोन के स्तर एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए एक संतुलन बनाए रखते हैं। यह संतुलन ही सुनिश्चित करता है कि शरीर की आवश्यकतानुसार सही मात्रा में हार्मोन उपलब्ध हों।
FSH और LH स्तर का महत्व: कब हो जाएं सतर्क?
FSH और LH के रक्त स्तर का मापन डॉक्टरों के लिए प्रजनन स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण निदान उपकरण है। इन हार्मोनों के स्तर में कोई भी असामान्यता कई स्वास्थ्य स्थितियों का संकेत दे सकती है:

 बांझपन (Infertility):


 महिलाओं में उच्च FSH स्तर कमजोर अंडाशय (डिम्बग्रंथि विफलता) का संकेत हो सकता है, जबकि पुरुषों में यह वृषण की कार्यक्षमता में कमी का संकेत दे सकता है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) जैसी स्थितियों में FSH और LH का अनुपात अक्सर असंतुलित होता है, जिससे ओव्यूलेशन प्रभावित होता है और बांझपन हो सकता है।

 पिट्यूटरी ग्रंथि के मुद्दे: 


पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर या अन्य क्षति FSH और LH के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है, जिससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है।

 मासिक धर्म संबंधी विकार: 

अनियमित मासिक धर्म, अनुपस्थित मासिक धर्म (एमेनोरिया), या समय से पहले रजोनिवृत्ति (Premature Menopause) जैसे मामलों में इन हार्मोनों के स्तर की जांच की जाती है।

 यौन विकास संबंधी समस्याएं:


 बच्चों में समय से पहले यौवन (Precocious Puberty) या विलंबित यौवन (Delayed Puberty) के कारणों का पता लगाने के लिए भी FSH और LH के स्तर का मूल्यांकन किया जाता है।


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